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उनका बचपन तुंगीपाड़ा में बीता, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में उनका परिवार सेगुनबागीचा और फिर ढाका चला गया।
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शेख हसीना को शुरुआत में राजनीति में रुचि नहीं थी। 1966 में ईडन महिला कॉलेज में पढ़ते समय उनकी रुचि जगी और स्टूडेंट यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनीं।
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बाद में, उन्होंने अपने पिता की पार्टी आवामी लीग के स्टूडेंट विंग का काम संभाला और यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका में भी सक्रिय रहीं।
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1975 में बांग्लादेश की सेना ने विद्रोह किया और शेख हसीना के माता-पिता और तीन भाइयों की हत्या कर दी।
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शेख हसीना, जो उस समय यूरोप में थीं, बच गईं। इसके बाद वे कुछ समय जर्मनी में रहीं और फिर भारत में शरण ली, जहां वे 6 साल रहीं।
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